श्री प. प. श्री वासुदेवानंद सरस्वती टेंबे स्वामी महाराज व श्री प. प. श्रीलोकनाथतीर्थ स्वामी महाराज स्मारक ट्रस्ट, पुणे
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कुंडलिनी शक्तिपात महायोग

अलौकिक अनुभूति, अपार शांती तथा दिव्य आनंद प्रदान करने वाला साधनमार्ग

अति प्राचीन, विशुद्ध, दुर्लभ साधन पद्धति

वेद, उपनिषद, श्रीमद् भगवद्गीता,श्रीज्ञानेश्वरी आदि.ग्रंथों द्वारा गौरवान्वित पंथराज

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अलौकिक आनंद,शांति और समाधान प्राप्ती

शरीर, मन, बुद्धि का शुद्धिकरण,  दैवी शांति, समाधान का साक्षात्कार प्रदान करने वाला साधन मार्ग

धर्म, जाति, वंश, लिंग आदि. भेदविरहित विश्वात्मकता

विश्वात्मक चैतन्यशक्ति अर्थात कुंडलिनी भगवती ही सबकी मातृस्वरुप शक्ति होने के कारण भेदभाव विरहित योगमार्ग

 

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प्रदीर्घ और दिव्य सदगुरु, महापुरुषों की परंपरा

कुंडलिनी शक्तिपात विद्या का हजारों वर्षों की उज्वल, दैदिप्यमान परंपरा का साधन मार्ग

शक्तिपात महायोग सबसे अनूठा, प्रभावी और निश्चित परमानंद देनेवाला है

आत्मज्ञान की  प्राप्ति ही मनुष्य जन्म का प्रमुख उद्देश हैं| इसीकी प्राप्ती हेतू प्राचीन भारतीय तत्वज्ञान में कई मार्गों को निदर्शित किया गया है| उनमें से  ज्ञानयोग,भक्तियोग, मंत्र योग, हठयोग, राजयोग, लययोग आदि. अनेक एवं परिचित पर्याय समस्त मानवजाति के समक्ष उपलब्ध हैं| इन सभी मार्गो से भिन्न परंतु अत्यंत दिव्य एवम प्रत्यक्ष अनुभूती की उपलब्धि करानेवाला योगमार्ग केवल  महायोग ही हैं| हठयोगादी योगमार्ग की साधना में, साधक को स्वप्रयत्न, तथा निष्णात एवम कुशल गुरु के मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता होती हैं|

कुशल एवम समर्थ गुरु के अभाव में साधक को कई कष्ट और विपदाओं का सामना करना पड सकता हैं| इसके चलते साधक की इस मार्ग पर की उन्नती बहुत ही धीमी गति से हो सकती हैं| इसके विपरीत शक्तिपात महायोग दीक्षित साधक को, दीक्षाकर्ता सद्गुरू की कार्यकारी संकल्प शक्ती का बडा सहारा होता हैं| केवल संपूर्ण समर्पण एवं श्रध्दा ही साधक का कल्याण कराती हैं| महायोग में सद्गुरू के संकल्प  शक्ती से, साधक की कुंडलिनी शक्ती जागृत होती हैं|

साधकउन्नती के आवश्यकता नुसार, एवं उसकी योग्यतानुसार,  शक्तीस्वरूप माँ भगवती विभिन्न क्रियाएँ कराती हैं| यह क्रियाएँ शारीरिक, मानसिक,एवम प्राणों, के स्तर पर साधक को भिन्न-भिन्न अनुभव कराती हैं| सद्गुरु की अहैतुकी कृपा, एवं साधक का साधनरत होना, इन दोनों कें आपस में जुडते ही, साधक अधिकाधिक अंतर्मुख होता चला जाता हैं|  दिव्य और विलक्षण अनुभवाेकों प्राप्त करते हुएँ , साधक क्रमिक रुप से धीरे-धीरे इस आनंददायी पथ पर आगे बढता चला जाता हैं| निष्ठापूर्वक साधनरत साधक को, दिव्य ज्ञान और अंतिम कल्याण की प्राप्ती होती हैं|

महायोग ही सिद्धयोग, कुंडलिनी शक्तीयोग, शक्तिपातयोग आदि अनेक पर्यायवाची शब्दों से जाना जाता हैं| श्रीमद्भगवद्गीता एवं ग्रंथराज ज्ञानेश्वरी दोनों ही श्रेष्ठतम ग्रंथ, महायोग का सर्वश्रेष्ठ योगमार्ग के रुप में प्रतिपादन करते है| यहीं वेदोक्त आत्मदर्शन का गुह्य मार्ग हैं|

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शक्तिपात महायोग सर्वश्रेष्ठ है

योगशास्त्र के अनुसार भगवती कुंडलिनी का मूलाधार में स्थित है।  इसी को विश्वात्मक चैतन्य शक्ती, आदिमाया कहा  जाता है। यह शक्ति सुप्त, व्यापक होती है मगर व्यक्ति के कई जन्मों के आनेकनेक संस्कारों का आवरण उसपर होता  है। एक तरह से हमारे अपने ही कर्मों के जाल में उसे हम बंदिस्त करते हैं। उसका जागरण करने के बाद, उसे बंधमुक्त करने के बाद ही साधक आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़ता है। कुंडलिनी शक्ति जागरण के लिए हठयोग में कई उपायों का वर्णन आता है, मगर यह कठिन, कष्टप्रद और जोखिम से भरे होते हैं। इस पद्धति में सिद्ध गुरु महात्मा का निरंतर मार्गदर्शन भी आवश्यक होता है। मगर इसके विपरीत कुंडलिनी महायोग साधन में सद्गुरु के दिव्य संकल्प व्दारा दीक्षा के समय ही सुपात्र शिष्य को कुंडलिनी जागृति का अनुभव होता है। 

महायोग व्दारा कुंडलिनी जागृति का अनुभव प्राप्त करने के लिए जो व्याकुल हुआ है, ऐसा मुमुक्षु व्यक्ति सिद्ध सद्गुरु को दीक्षा के लिए प्रार्थना करता है। जैसे एक दीपक से दूसरा दीपक प्रज्वलित किया जाता है, उसी प्रकार से सिद्ध सद्गुरु आर्त मुमुक्षु व्यक्ति को योग्य मुहूर्त पर संकल्प दीक्षा देते हैं। दीक्षा देते समय मुमुक्षु साधक और सिद्ध सद्गुरु एक ही जगह पर होने की आवश्यकता नहीं होती है। दीक्षा प्राप्त करने वाला साधक अपने घर पर या विदेश में भी हो सकता है सिद्ध सद्गुरु अपने स्थान पर हो सकते हैं। संकल्प व्दारा कुंडलिनी महायोग दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक की कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है। अब तक जो अधोमुख थी, वह कुंडलिनी शक्ति अब ऊर्ध्वमुख हो जाती है। अनेक जन्मों के अनेकानेक संस्कारों के आवारणों के जाल से स्वयं को मुक्त करने के कार्य में वह लिप्त हो जाती है। इस कार्य के लिए जिन जिन बातों की आवश्यकता है, ऐसी क्रियाएं साधक व्दारा वह कर लेती है। इस पूरी प्रक्रिया में साधक को उसके संस्कारों के अनुसार हठ, मंत्र, राज, और लय योग में वर्णन किए गए क्रियायों का अनुभव अनायास होने लगता है।

अविरत महायोग साधन करने से साधना की उच्च अवस्था में साधक का मान और प्राण इनका विलय हो जाता है। इसी अवस्था में साधक को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। इसका वर्णन पतंजलि महामुनी व्दारा ‘चित्तवृत्ती निरोधः’  इन शब्दों में किया है, 

श्रीवासुदेव निवास, महायोग आद्यपीठ

भगवान श्रीशंकर आदियोगी हैं| भगवद्नुग्रह एवं अनुकंपा से  परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीगंगाधरतीर्थस्वामी महाराजश्री को महायोग की दीक्षा का कृपादान प्राप्त हुआ|अपने केवल एकमात्र शिष्य परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीनारायणदेवतीर्थ स्वामीमहाराजश्री को आपने, महायोगदीक्षा का अमोघ दान दिया| इसी परंपरा में आगे चलकर  परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीशंकर पुरुषोत्तमतीर्थस्वामी महाराजश्री को दीक्षादान मिला. आपने अपने शिष्य परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीलोकनाथ तीर्थस्वामीमहाराज  जी को दीक्षित किया| इस शक्तिपात महायोग की दिव्य परंपरा से अनेक जिज्ञासू लाभान्वित हुएँ हैं|

शक्तीस्वरूप माँ भगवती की, ‘दक्षिण की ओर चलो’ इस आज्ञा के होते  परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीलोकनाथतीर्थ स्वामीमहाराज जी उत्तर से दक्षिण की ओर निकल पडे| इस यात्रा मे उनका साक्षात्कार  परम पूजनीय योगिराज श्रीगुळवणीमहाराजश्री से नर्मदा किनारे, होशंगाबाद (म.प्र) मे हुई|अपने इस शिष्य की अनुकूलता को देखते हुए  परम पूजनीय परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीलोकनाथ तीर्थस्वामीमहाराजश्री ने इस शक्तिपात विद्या का दान श्रद्धेय प.पू  योगिराज श्रीगुळवणी महाराजश्री को प्रदान किया| महाराष्ट्र मे इस विद्या का, लोककल्याणार्थ प्रसार करने की गुर्वाज्ञा को शिरोधार्य मानकर श्रद्धेय प.पू योगिराज श्री गुळवणीमहाराजश्री ने, आजन्म शक्तिपात महायोग से अनेकों भक्तों का उध्दार किया| श्रद्धेय प.पू योगिराज श्रीगुळवणी महाराजश्री ने आज से ७५ साल पूर्व पाहिली महायोग की दीक्षा प्रदान की  थी| आपकी पहिली शिष्या बार्शी (जि. सोलापूर, महाराष्ट्र)की निवासी ,सौ गोपिकाबाई प्रल्हाद शास्त्री जोशी थी| विद्यमान प्रधान विश्वस्त एवं पीठाधीश  परम पूजनीय श्री. शरदशास्त्री जोशी महाराज जी  की वें दादी थी, यह एक विलक्षण संयोग की बात है|

श्रीवासुदेव निवास ,आश्रम की स्थापना १९६५ में हुई | इस कालखंड से भी पूर्व परम पूजनीय योगिराज श्रीगुळवणीमहाराज जी  नें अनेक लोगों को इस दिव्यपथ पर अग्रेसर कराया था| इस कार्य को अखंड उत्साह एवं निष्ठा से  श्रद्धेय प.पू श्रीदत्तमहाराज कवीश्वरजी  तथा उनके उपरांत श्रद्धेय प. पू योगतपस्वी श्रीनारायणकाका ढेकणे महाराज जी  ने आगे बढाया|

आज हम श्रीवासुदेव निवास आश्रम में, श्रद्धेय प.पू.योगिराज श्रीगुळवणी महाराजश्री द्वारा बोए हूए बीज का, विशाल वटवृक्ष के रुप में स्थित्यंतर होता हुआ देख सकते हैं|

शक्तिपात महायोग वैश्विक तथा व्यक्तीगत कल्याण के लिए है ​

शक्तिपात महायोग मार्ग की दीक्षा हेतू किसी भी प्रकार के शुल्क की आवश्यकता नही हैं| धर्म,जाति, लिंग, आर्थिक परिस्थिती, इ. का कोई भी बंधन,  साधक पर बंधनकारक नही| केवल विशुध्दज्ञान, परमात्म स्वरूप के पहचान की तीव्र जिज्ञासा एवं आर्तता,व सदगुरु द्वारा प्राप्त साधनमें निष्ठापूर्वक साधनरत रहने की तयारी, आहार, आचार एवं विचार की शुद्धता इ.  नियमों का पालन करनेवाले किसी भी व्यक्ती को इस मार्ग की दीक्षा प्राप्त हो सकती हैं|

कुंडलिनी शक्तिपात महायोग दीक्षा संबंधी सामान्य नियमावली

१. साधक को श्रीमद्भगवद् गीतोक्त मार्ग अर्थात शक्तिपात महायोग के, प्रत्यक्ष अनुभव की तीव्र इच्छा एवं गुरुवचनों पर अटल व पूर्ण श्रद्धा हो|
२. साधक को घर परिवार के सभी सदस्यों की, दीक्षा हेतू अनुमति प्राप्त हो|पती एवं पत्नी  के बीच दीक्षा हेतू परस्पर अनुमती अनिवार्य हैं
३. मैं सर्वव्यापी चैतन्य, गुरुतत्व का अंश हूँ , यह दृढश्रध्दा साधक मे हों|
४.साधक सामिष पदार्थ (मांसाहार)  राजासिक,तमासिक पदार्थ (लहसून ,प्याज आदि)व्यसन  (मद्य, बिडी, तमाखूँ सिगारेट आदि. ) का खान-पान वर्ज्य  करें|
५.साधक के परिवार में मासिकधर्म के नियमों का पालन हो|
६. दीक्षाउपरांत साधक, नियमित रूप से, कम से कम १घंटे का साधन अवश्य करें|धीरे धीरे इस समय को बढाने का  प्रयत्न अवश्य करें|
७. इस मार्ग पर साधक को,  माँ भगवती ही अपने शिशुसमान संभालते हुएँ , साधक को अग्रेसर कराती हैं| अतः इसमे धर्म, जाति, आयु, लिंग इ. का भेद नही होता|

दैनंदिन व्यवहार मे भी साधक, समभाव, सर्वत्र बंधूभाव, का पालन अवश्य करें|

 

उपर निर्दिष्ट सूचनाओं एवं नियामों का पालन करनेवाले जिज्ञासूओं के लिए महायोग दीक्षा हेतू प्रार्थना पत्र